Vat Savitri Vrat Katha

वट सावित्री पूजा – इस व‍िधि से पूजन करने के बाद सिद्ध होती हैं सभी मनोकामनाएं, जानिये पूजा की विधि

धर्म। विवाहित महिलाओं की ज़िन्दगी में वट सावित्री पूजा अहम् स्थान रखती है, इस साल यह पूजा 29 मई रविवार को मनाया जाएगा। अखंड सौभाग्य व संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण करनेवाला व्रत वटसावित्री पूजा को अगर सही विधि से किया जाए, तो सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। विवाहित महिलायें यह व्रत अखण्ड सौभाग्य की कामना के साथ मनाती हैं। मान्यता है कि इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और उन्नति और संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। भारतीय जनमानस में व्रत और त्योहार की विशेष महत्ता है। हिन्दुओं में प्राचीनकाल से ही हर माह कोई ना कोई व्रत (Vat Savitri Vrat Katha) त्यौहार मनाया जाता है। इस पूजा में जेठ की अमावस्या पर बरगद की पूजा की जाती है। ऐसी आस्था है की पीपल में ब्रह्म देव व बरगद में भगवान भैरों का निवास रहता है।

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Vat Savitri Vrat Katha

भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। सावित्री से प्रसन्न होकर यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सौंपे थे। चने लेकर सावित्री सत्यवान के शव के पास आई और सत्यवान में प्राण फूंक दिए। इस तरह सत्यवान जीवित हो गए। तभी से वट सावित्री के पूजन में चना पूजन का नियम है। वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष जिसका अर्थ है बरगद का पेड़, का खास महत्व होता है। इस पेड़ में लटकी हुई शाखाओं को सावित्री देवी का रूप माना जाता है। वहीं पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास भी माना जाता है। इसलिए कहते हैं कि इस पेड़ की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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व्रत कैसे करें (Vat Savitri Vrat Katha)

वट सावित्री व्रत करने वाली महिलायें पूजा करने समय सबसे पहले वट वृक्ष को दूध और जल से सींचना चाहिए। वट सावित्री व्रत के दिन दैनिक कार्य करने के बाद पुरे घर को गंगा जल से पवित्र करना चाहिए। इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। ब्रह्माजी की बाईं ओर सावित्री तथा दूसरी ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख देना चाहिए। इसके पश्चात सावित्री व सत्यवान का पूजन कर, वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए। पूजन के समय जल, मौली, रोली, सूत, धूप, चने का इस्तेमाल करना चाहिए। सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर सात बार परिक्रमा कर सावित्री व सत्यवान की कथा सुनना चाहिए। इस दिन चने बिना चबाए सीधे निगले जाते हैं।

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इस दिन विवाहित महिलायें अपने अखण्ड सौभाग्य के लिए आस्था और विश्वास के साथ व्रत रहकर पूजा अर्चना करती है। धर्मग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है कि पीपल के पत्तों में देवी देवता वास करते हैं। भारत में वृक्षो को धार्मिक आस्था से जोड़ कर त्यौहार और व्रत रहने की परम्परा है। यह व्रत भी इसी मान्यता के तहत मनाया जाता है।

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